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देश
भीम आर्मी दलितों की आवाज़ या कुछ और?
by Basant Kumar on May 14th 2017, 07.57 PM
सहारनपुर। शहर से महज़ दो किलोमीटर दूरी पर स्थित नया गाँव में गर्मी से राहत पाने के लिए आम के बाग़ में समय सिंह बैठे हुए हैं। चेहरे पर आए पसीने को पोछते हुए समय सिंह भीम आर्मी को दलितों का सबसे बड़ा हिमायती बताते हैं। समय की तरह बाग़ में बैठी बुजुर्ग महिलाएं, युवा और लड़के भी भीम आर्मी के पक्ष में बोलते हैं।
भीम आर्मी का काम दलितों के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाना है, दंगे-फसाद करना नहीं। हम दलितों के साथ शब्बीरपुर में हुए हिंसा पर न्याय की मांग को लेकर बैठक कर रहे थे तो पुलिस ने हमें मारा और फिर कुछ लड़के आक्रोशित हो गए।कमल सिंह, भीम आर्मी , अध्यक्ष सहारनपुर
सहारनपुर के आसपास के दलित समाज के लोग (खासकर युवा) जिस भीम आर्मी को अपना हीरो मान रहे हैं। उनपर शब्बीरपुर जातीय हिंसा के बाद जिला मुख्यालय में तोड़-फोड़ करने, लोगों की गाड़ियों में आग लगाने और पुलिस पर हमला करने का आरोप है। आरोप लगने के बाद भीम आर्मी के सभी प्रमुख नेता शहर से भाग चुके हैं और जो शहर में हैं वो किसी से बातचीत नहीं कर रहे हैं। पुलिस लगातार भीम आर्मी के लोगों को तलाश रही है।
दलितों की रक्षा के लिए काम करता है भीम आर्मी
भीम आर्मी के
सहारनपुर जिला अध्यक्ष कमल सिंह भी अब किसी के सम्पर्क में नहीं हैं। कमल सिंह ने गाँव कनेक्शन से बातचीत में बताया, “भीम आर्मी का काम दलितों के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाना है, दंगे-फसाद करना नहीं। हम दलितों के साथ
शब्बीरपुर में हुई हिंसा पर न्याय की मांग को लेकर बैठक कर रहे थे तो पुलिस ने हमें मारा और फिर कुछ लड़के आक्रोशित हो गए।”
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‘‘भीम आर्मी हमारी आवाज़ है। चंद्रशेखर भैया (प्रमुख, भीम आर्मी) को अगर जेल ले गए तो जेल में पैर रखने की जगह नहीं बचेगी। हम भीम आर्मी के लिए मर भी सकते हैं।’’ समय सिंह (50 वर्ष) भीम आर्मी से सम्बंधित सवाल पर उतावले होकर कहते हैं।
नौ मई को क्या हुआ था
नया गाँव के रहने वाले रुपेश (उम्र 24) भीम आर्मी से जुड़े हुए हैं। नौ मई की घटना के बारे में वे बताते हैं, ‘‘पांच मई के दिन शब्बीरपुर में दलितों के घरों में आग लगाए जाने पर जिनके घर जले उनको सरकार ने कोई मदद नहीं दी। लेकिन, एक दूसरे पक्ष का एक लड़का दम घुटने के कारण मर गया तो उसे सरकार ने आर्थिक मदद देने की घोषणा कर दी। दलितों को सही मुआवजा मिले इसके लिए भीम आर्मी ने रविदास हॉस्टल में बैठक बुलाई तो प्रशासन ने आठ मई की रात ग्यारह बजे बैठक की परमिशन कैंसिल कर दी। अब जब जिलेभर से लोगों को बुला दिया गया था और सुबह आठ बजे से बैठक होनी थी तो कैसे मीटिंग को कैसे रोका जा सकता था?’’
भीम आर्मी ने महाराणा प्रताप की याद में बन रहे हॉल को तोड़ दिया था।
वह आगे बताते हैं, ‘‘प्रशासन की इजाजत के बगैर सुबह-सुबह युवा रविदास हॉस्टल में जुटने लगे तो पुलिस ने वहां छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया। उसके बाद छात्र गांधी पार्क चले गए बैठक करने। वहां भी भारी संख्या में पुलिस मौजूद थी। पुलिस ने उन्हें मारा। हम पीड़ित थे और हमें बैठकर बातचीत करने भी नहीं दिया जा रहा था। पुलिस के मारे जाने के बाद लड़के उग्र हो गए और वाहनों को आग लगाने लगे। आग लगाना या पुलिस पर हमला करना गलत था, लेकिन हम लोग परेशान थे। हमसे कोई बात करने वाला नहीं था।’’
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भीम आर्मी क्या है?
पुलिस के लिए भले आर्मी एक उपद्रवी संगठन हो, लेकिन
दलित समुदाय इसके लिए लड़ने-मरने को तैयार है। जो जोश-जुनून पहले मायावती को लेकर दलित समुदाय में देखा जाता था वही जोश सहारनपुर में चंद्रशेखर आजाद (रावण) को लेकर देखने को मिल रहा है। भीम सेना से जुड़े राजीव राज (बदला नाम) बताते हैं कि प्रदेश में कहीं भी दलितों पर अत्याचार होता है। भीम सेना उनकी मदद के लिए जाती है। शब्बीरपुर में भी यही हुआ था। हम लोग न्याय की मांग करने के लिए जमा हो रहे थे और हम पर हमला कर दिया गया। भीम आर्मी वंचितों की आवाज़ है। इस संगठन में दलितों को ही शामिल किया जाता है।
भीम आर्मी पर अशांति फ़ैलाने का आरोप है.
भीम आर्मी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर एक इंटरव्यू में बताते हैं, ‘‘इसका निर्माण दलित समाज को शोषण से बचाने के लिए किया गया है। हमारे समाज के लोगों को बिना गलती मारा जाता है। छोटी-छोटी बातों पर उन्हें गलियां दी जाती हैं। भीम आर्मी की शुरुआत एचपी कॉलेज से हुई जहां दलित समुदाय के बच्चों को इसलिए मारा जाता था कि वो नल से पानी पहले पी लेते था या क्लास में पहले आकर बैठ जाते थे। वो पढ़ते थे तो मारा जाता था। जब ये सारे मुद्दे हमारे सामने आए तो हमें लगा कि इससे लड़ने के लिए एक संगठन की ज़रूरत है फिर भीम आर्मी बनाई गई। इसका एकमात्र उद्देश्य दलितों को शोषण से बचाना है।
भीम आर्मी का नक्सली लिंक
राजपूत समुदाय ने जिले के डीएम से मिलकर
भीम आर्मी का नक्सलियों से मदद मिलने के सम्बंध की बात कही है। इसके बाद पुलिस भी इस सम्बंध में जांच कर रही है।
एक पुलिस अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि इनके हमला करने का तरीका नक्सलियों से मिलता है, जिसके बाद शक बढ़ गया है।
शब्बीरपुर जातीय संघर्ष के बाद में चर्चा में है भीम आर्मी
इस सम्बंध ने रविदास हॉस्टल के संदीप कुमार कहते हैं, “बाबा साहब को मानने वाले कभी हत्या में भरोसा नहीं करते हैं। जब तक भीम आर्मी संविधान के अंदर रहकर काम कर रही है, तब तक उसे गलत नहीं बोला जा सकता है। नौ मई को जो हुआ भीम सेना को बदनाम करने के लिए शायद किया गया हो।”
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नक्सली का आरोप लगने पर
शब्बीरपुर हिंसा में घायल राजू कहते हैं, “खाली हाथ पंचायत करने आए लोगों का नक्सलियों से सम्बन्ध है और गाँव में पेट्रोल बम और तलवार लेकर आने वाले क्या हैं? पुलिस
शब्बीरपुर में पांच मई को जो हुआ उसे भुलाकर नौ मई को जो हुआ उसे याद कर रही है। अगर पुलिस-व्यवस्था मज़बूत होती तो न शब्बीरपुर हिंसा होती और न बाकी जगह हुई हिंसा होती।”